45 वर्ष पूर्व आज़ के दिन आपातकाल लगा कर इंदिरा गांधी
ने लोकतंत्र का खात्मा करने की साज़िश की थी- सुभाष श्रीवास्तव
रीवा- 24 जून! दुनिया के सबसे बडे़ लोकतांत्रिक देश भारत का लोकतंत्र आज़ से ठीक 45 वर्ष पूर्व यानि 25 जून 1975 को उस समय खतरे में पड़ गया था, जब तात्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने "मेंटेनेंस ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट" अर्थात मीसा कानून के तहत सम्पूर्ण देश में आपातकाल लगा दिया और लोकतंत्र का खात्मा करने की सोची समझी साज़िश की! इसीलिए यह दिन लोकतंत्र के इतिहास का काला अध्याय कहा जाएगा!
उक्त आशय के विचार समाजवादी नेता, वरिष्ठ समाजसेवी एवं 18 माह 6 दिन रीवा जेल में आपातकाल में बंद रहने वाले बेमाफ़ी के मीसाबंदी सुभाष श्रीवास्तव ने आज़ यहां पर जारी अपनी एक लिखित प्रेस विज्ञप्ति में व्यक्त किए!
श्री श्रीवास्तव ने अपनी विज्ञप्ति में आगे बताया कि द्वितीय आज़ादी का आंदोलन कहे जाने वाले आपातकाल लगने के पीछे दो मुख्य कारण थे। पहला कारण था आज़ादी के आंदोलन के योद्धा लोकनायक जयप्रकाश नारायण की रहनुमाई में 7 मार्च 1974 को दिल्ली में कांग्रेसी हुकूमत के विरोध में छात्रों, नौजवानों, किसानों, मजदूरों के साथ ही साथ समस्त विपक्षी दलों का एक विशाल प्रदर्शन। बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों के साथ सम्पूर्ण सामाजिक परिवर्तन हेतु आहुत इस आंदोलन में तक़रीबन 10 लाख लोगों ने भाग लिया! यह प्रदर्शन इतना जबरजस्त था कि इंदिरा गांधी और उनकी पूरी सरकार घबरा गयी! इसके पूर्व दिल्ली में इस तरह का जन प्रदर्शन कभी नही हुआ! इस सम्पूर्ण क्रांति के आंदोलन का प्रमुख नारा था राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर की पंक्तियां- "सिंहासन खाली करो कि जनता आती है"। इसीलिए आपातकाल लगने का पहला कारण बना देश की जनता का तात्कालीन सरकार के प्रति आक्रोश।
श्री श्रीवास्तव ने आगे कहा कि आपातकाल लगने का दूसरा महत्वपूर्ण कारण रहा 1971 में उत्तर प्रदेश की रायबरेली संसदीय क्षेत्र से लोकसभा का चुनाव, जिसमें प्रत्यक्ष रूप में देश के प्रख्यात समाजवादी नेता राजनारायण को कांग्रेस की उम्मीदवार इंदिरा गांधी ने चुनाव हरा दिया! राजनारायण ये चुनाव तो हार गए लेकिन उन्होनें इंदिरा गांधी के ख़िलाफ़ वो सारे सबूत इकट्ठे कर लिए जो इंदिरा गांधी के चुनाव को गलत या अवैध साबित कर सकते थे इन्ही सबूतों के आधार पर नेता राजनारायण ने इलाहबाद हाई कोर्ट में चुनाव को अवैध घोषित करने के लिए रिट पिटीशन दायर की! ठोस सबूतों के आधार पर इलाहबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायधीश माननीय जगमोहन लाल सिन्हा ने कई वर्षो तक चले इस मुकदमें के बाद 12 जून 1975 को दुनिया को चौंका देने वाला ऐतिहासिक फ़ैसला सुनाया, जिसमें उन्होनें माना कि इंदिरा गांधी ने चुनाव जीतने के लिए सरकारी तंत्र का दुरुपयोग किया है, इसलिए इंदिरा गांधी के 1971 के चुनाव को अवैध घोषित किया जाता है और 6 साल तक चुनाव लड़ने के लिए प्रतिबंधित किया जाता है! इस निर्णय से बौखलाई इंदिरा गांधी द्वारा फ़ैसला आने के ठीक 13 दिन बाद यानि आज ही के दिन 25 जून 1975 को लोकतंत्र का गला घोंट कर सम्पूर्ण देश में आपातकाल लगा दिया गया जिसमें अभिव्यक्ति की आज़ादी समाप्त कर दी गयी। इस तानाशाही का विरोध करने वाले लोगों के लिखने और बोलने पर पाबंदी लगा दी गयी! परिवार नियोजन के नाम पर 17 साल के नौजवान से लेकर 75 साल के बुजुर्ग तक का ऑपरेशन कर दिया गया। प्रेस में सेंसरशिप लगा दी गयी और पूरे देश में सत्ता के विरोधियों को मीसा कनून के तहत चुन चुन कर जेल की सीकचों में ठूंस दिया गया!
श्री श्रीवास्तव ने आगे बताया कि आपातकाल की ज्यादती का एक बड़ा नमूना ये भी था कि लोग मीसा में गिरफ़्तार होने के बाद अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए किसी भी अदालत में अपील नहीं कर सकते थे इसलिए उस समय कहा जाता था "नो अपील, नो वकील, नो दलील"। महात्मा गांधी जैसे महापुरुषों ने भारतीय स्वाधीनता आंदोलन जिन मूल्यों के लिए चलाया था वो मूल्य आपातकाल में खतरे में पड़ने लग गए थे! लोकतंत्र खतरे में पड़ने लग गया था! आलम ये था कि चहुँ ओर हो रही मनमानी से आम जनमानस में व्यापक भय व्याप्त हो गया! किंतु जब इंदिरा गांधी पर अंतराष्ट्रीय राजनैतिक दबाव पड़ा तो उसके चलते उन्हें 21 मार्च 1977 को इस देश से आपातकाल हटाना पड़ा और लोकसभा का चुनाव कराना पड़ा! और इस लोकसभा चुनाव में समाजवादी नेता राजनारायण ने कांग्रेस प्रत्याशी और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को रायबरेली लोकसभा से करारी मात दी।
श्री श्रीवास्तव ने अपनी विज्ञप्ति में आगे बताया कि आपातकाल में समूचे देश में विपक्षी राजनैतिक दलों के समस्त बडे़ नेताओं को गिरफ़्तार कर लिया गया था, जिनमें लोकनायक जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, राजनारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, चंद्रशेखर, चौधरी चरण सिंह, जार्ज फर्नांडिस, मधु लिमये, मधु दंडवते, लालकृष्ण आडवाणी, जनेश्वर मिश्रा, कर्पूरी ठाकुर एवं सुषमा स्वराज जैसे प्रख्यात राष्ट्रीय राजनेता शामिल थे।
श्री श्रीवास्तव ने विज्ञप्ति में आगे कहा कि देश में आपातकाल लगने जैसी बड़ी घटना हो तो उसके प्रभाव से विंध्य क्षेत्र कैसे अछूता रह सकता था! रीवा संभाग के तक़रीबन 300 लोगों ने अपनी गिरफ्तारियां दी! जिसमें रीवा जिले के 80 लोग मीसा कानून के तहत जेल में निरुद्ध किए गए थे! इनमें सोशलिस्ट पार्टी, जनसंघ, भारतीय लोकदल, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, समाजवादी युवजन सभा एवं आंनद मार्ग आदि राजनैतिक एवं सामाजिक संगठनों से संबंधित लोग शामिल थे।
रीवा में प्रमुख रूप से जिन नेताओं की गिरफ्तारी हुई थी उनमें स्व. चन्द्रमणि त्रिपाठी, स्व. रामलखन सिंह, स्व. प्रेमलाल मिश्रा, स्व. चारु झा, स्व. मणिराज सिंह, स्व. अच्छे लाल सिंह, स्व. लक्ष्मी किशोर श्रीवास्तव, स्व. श्रीमूर्ति आचार्य, स्व. राघव ताम्रकार, स्व. रघुनंदन ताम्रकार, स्व. बंसत प्रसाद गुप्ता, स्व. सीता प्रसाद शर्मा, कौशल सिंह, रामलखन शर्मा, रमानिवास शुक्ला, इंजी. रामसिया सिंह, ब्रहस्पति सिंह, अजय खरे, बद्री तिवारी रामेश्वर सोनी एवं रामायण पटेल आदि शामिल थे!
विज्ञप्ति के अंत में सुभाष श्रीवास्तव ने कहा कि मेरे जैसे नौजवान को 18 वर्ष कि कुल उम्र में 18 माह 6 दिन जेल में रखना तात्कालीन हूकूमत की तानाशाही और बर्बरता को दर्शाता है! आज़ 45 वर्ष बाद मैं ये कह सकता हूँ कि 25 जून 1975 लोकतंत्र के इतिहास का काला दिन था, जो कभी विस्मृत नही किया जा सकता। वास्तव में समस्त लोकतंत्र रक्षक सेनानियों ने आपातकाल के दौरान लोकतंत्र को अक्षुण्ण रखने और नागरिक अधिकारियों की रक्षा के लिए कठोर यातनाएं सही! यक़ीनन उनके अदम्य साहस और संकल्प शक्ति के कारण ही लोकतंत्र महफूज़ रह पाया। इसलिए जब कभी भी द्वितीय आज़ादी के आंदोलन का इतिहास लिखा जाएगा मीसाबंदियो का उल्लेख बडे़ आदर व सम्मान के साथ किया जाएगा।