आजाद मंच युवाध्यक्ष मध्यप्रदेश मनीष शुक्ला ने कहा

स्वाधीनता के 73 वर्ष पूरे हो गए। स्वतन्त्रता के बाद व्यवस्था क्षीण होती गई। स्वतन्त्रता जैसे शब्द, शब्द तक ही सीमित रह गए। स्वतन्त्रता का अनुपालन सही मायने में नहीं हो सका। सत्य और अहिंसा विरोधी रथ पर सवार होकर सत्ता के चरम शिखर पर पहुँचने वाले सुधारकों की मनोदशा ठीक नहीं है। सुधारकों की प्रवृत्ति ठीक होती तो देश में आरक्षण को लेकर राजनीति न होती।


 


 


 


भ्रष्ट प्रशासन, शिक्षा से लेकर न्याय तक का राजनैतिककरण होना, लोकतंत्रात्मक प्रणाली का जुगाड़ तंत्रात्मक हो जाना आदि अन्य सामाजिक कुरीतियों ने जन्म ले लिया। भारत में लोकतंत्र है और राजनेताओं ने लोकतंत्र का आधार, आरक्षण को बना दिया है। 25/08/1949 को संविधान सभा में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति आरक्षण को मात्र 10 वर्ष तक सीमित रखने के प्रस्ताव पर एस. नागप्पा व बी.आई. मुनिस्वामी पिल्लई आदि की आपत्तियां आईं। डॉक्टर अम्बेडकर ने कहा कि मैं नहीं समझता कि हमें इस विषय में किसी परिवर्तन की अनुमति देनी चाहिए। यदि 10 वर्ष में अनुसूचित जातियों की स्थिति नहीं सुधरती तो इसी संरक्षण को प्राप्त करने के लिए उपाए ढूंढ़ना उनकी बुद्धि शक्ति से परे न होगा। आरक्षण वादी लोग, डॉ. अम्बेडकर की राष्ट्र सर्वोपरिता की क़द्र नहीं करते। आरक्षण वादी लोगों ने राष्ट्र का संतुलन ख़राब कर दिया है। आरक्षण वादी लोग वोट की राजनीति करने लगे हैं न कि डॉ. अम्बेडकर के सिद्धांत का अनुपालन कर रहे हैं। आरक्षण देने की समय सीमा तय होनी चाहिए जिससे दबे कुचले लोग उभर सकें। जब आरक्षण देने की तय सीमा के अंतर्गत दबे कुचले लोग उभर जाएं तो आरक्षण का लागू होना सफल माना जाए। आरोप लगाया जाता है कि आरक्षण कोटे से चयनित न्यायाधीश, आई.ए.एस., आई.ई.एस., पी.सी.एस., इंजीनियर, डॉक्टर आदि अपने कार्य का संचालन ठीक ढंग से नहीं कर पाते क्योंकि उन्हें कोटे के तहत उभारा गया। इस प्रकार के आरक्षण से मानवता पर कुठारा घात हो रहा है। अतएव शिक्षित व योग्य व्यक्ति को शोषण का शिकार होना पड़ रहा है। इस प्रकार की आरक्षित कोटे कि शिक्षा विकास कि उपलब्धि नहीं है। यह विकास के नाम पर अयोग्य लोगों को शरण देने वाली बात है। किसी भी देश के विकास में आरक्षण अभिशाप है।आज यदि हम देश को उन्नति की ओर ले जाना चाहते हैं और देश की एकता बनाये रखना चाहते हैं तो जरूरी है कि आरक्षणों को हटाकर हम सबको एक समान रूप से शिक्षा दें और अपनी उन्नति का अवसर पाने का मौका दें। अतः राष्ट्र के विकास को जीवित रखने के लिए आरक्षण को वोट कि राजनीति से दूर रखना होगा। आरक्षण, विकास का आधार नहीं हो सकता। आरक्षण लोकतंत्र का आधार नहीं हो सकता। आरक्षण समुदाय को अलग करने का काम करता है न कि जोड़ने का। ऐसी डोर जो समुदाय या लोगों को जोड़े वह है लोकतंत्र। लोकतंत्र का आधार सिर्फ और सिर्फ विकास हो सकता है क्योंकि डोर या रस्सी रूपी विकास ही समूह को जोड़ने का आधार है। लोकतंत्र का आधार विकास होना चाहिए न कि आरक्षण। ताजा स्थिति यह है कि आरक्षण राष्ट्रीय विकास पर हावी है। जिस तरह देश में फर्जी स्कूलों की बाढ़ आ चुकी है और हजार हज़ार में डिग्रियाँ बिक रही है जिससे वो लोग डिग्री तो पा लेते हैं किन्तु अपने दायित्वों का निर्वाह नहीं कर पाते क्योंकि योग्यता तो होती नहीं ! परिश्रम किए बिना ही पद मिल गया। वही स्थिति जाति प्रमाण पत्र की है कि बिना परिश्रम के जाति प्रमाण पत्र के सहारे पद मिल जाता है। फिर देश का क्या हो इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। जातिवाद देश को तोड़ने का काम करता है जोड़ने का नहीं। ये बात इन लोगों के समझ में नहीं आएगी क्योंकि समझने लायक क्षमता ही नहीं है। देश के विषय से इन्हें प्यारा है आरक्षण ! दूसरों की गलतियां निकाल कर ख़ुद को दोषमुक्त और दया का पात्र बनाना। आरक्षण जिसे ख़ुद अंबेडकर ने 10 साल से ज्यादा नहीं चाहा और जिन्हें ये लोग मसीहा मानते हैं उनके बनाए हुए नियम को ख़ुद तोड़ते हैं सिर्फ़ अपनी आरक्षण नाम की लत को पूरा करने के लिए। वैसे भी जब किसी को बिना किए सब कुछ मिलने लगता है तो मेहनत करने से हर कोई जी चुराने लगता है और वह आधार तलाश करने लगता है जिसके सहारे उसे वो सब ऐसे ही मिलता रहे ! यही आधार आज के आरक्षण भोगी तलाश रहे हैं। कोई मनु को गाली दे रहा है तो कोई ब्राह्मणों को। कोई हिंदू धर्म को, तो कोई पुराणों को। कुछ लोग वेदों को तो कुछ लोग भगवान को भी। परन्तु ख़ुद के अन्दर झाँकने का ना तो सामर्थ्य है और ना ही इच्छाशक्ति। जब तक अयोग्य लोग आरक्षण का सहारा लेकर देश से खेलते रहेंगे तब तक ना तो देश का भला होगा और ना समाज का और ना ही इनकी जाति का। देश के विनाश का कारण है आरक्षण। आज हर जाति में अमीर है हर जाति में गरीब। हर जाति में ज्ञानी लोग हैं और हर जाति में अज्ञानी ! हर जाति में मेहनत कश लोग हैं और हर जाति में नकारा, हर जाति में नेता हैं और हर जाति में उद्द्योगपति। देश को तोड़ रहा है सिर्फ़ जातिवाद वो भी कुछ लोगों की लालसा, वोट बैंक की राजनीति के माध्यम से। जिस दिन हर जाति के लोग जात पात भुलाकर योग्यता के बल पर आगे जायेंगे और योग्यता के आधार पर देश का भविष्य सुनिश्चित करेंगे देश ख़ुद प्रगति के रास्ते पर बढ़ चलेगा। आत्मनिर्भर भारत में, आरक्षण दीमक का काम करेगा। आरक्षण, भारत को आत्मनिर्भर बनने से रोकेगा। आरक्षण आत्मनिर्भरता में बाधक है। बिना आत्मनिर्भर के स्वतंत्र नहीं हुआ जा सकता है। अतएव आरक्षण लोगों की स्वतन्त्रता में बाधक है। आत्मनिर्भर भारत के लिए आरक्षण मुक्त भारत होना जरूरी है। आरक्षण, आत्मनिर्भरता की निशानी नहीं है। आरक्षण, विकलांगता की निशानी है ।।।आजाद मंच युवाध्यक्ष मध्यप्रदेश मनीष शुक्ला


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