आरिटीआई और पुलिस विभाग पर सत्र के 13वें वेबीनार का हुआ आयोजन, मप्र सूचना आयुक्त राहुल सिंह की अध्यक्षता में हुआ आयोजन, पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी, पूर्व राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप एवं आरटीआई एक्सपर्ट भास्कर प्रभु रहे विशिष्ट अतिथि* -----------------


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दिनांक 20 सितंबर 2020 स्थान रीवा भोपाल मध्य प्रदेश


 


    सन 1861 का अंग्रेजों द्वारा लाया गया भारतीय पुलिस अधिनियम आज डेढ़ सौ साल से अधिक का समय व्यतीत होने के बाद भी भारतीय समाज को एक भूत और प्रेत की तरह पीछे पड़ा हुआ है जिस प्रकार से प्रेत बाधा से युक्त मानव हमेशा प्रेत से परेशान रहता है ठीक वैसे ही भारत की पुलिस है। चाहे वह आम आदमी हो अथवा आरोपी हो सबके लिए एक प्रेत की तरह ही है। ऐसा इसलिए कि जहां आम आदमी की पुलिस थानों में कोई बात नहीं सुनी जाती और न ही सही तरीके से एफ आई आर दर्ज की जाती और न ही उन्हें कई बार न्याय मिल पाता ठीक वहीं यदि आरोपियों की बात की जाए तो भारत की पुलिस आज उन्हें ढूंढ ढूंढ कर एनकाउंटर करने में लगी हुई है जिससे भारत की पूरी न्याय प्रक्रिया पर ही प्रश्नचिह्न लग गया है कि क्या वास्तव में पुलिस ही सही गलत का फैसला कर फटाफट निर्णय दे देगी अथवा न्यायिक प्रणाली की भी कोई आवश्यकता शेष रह जाएगी?


 


 


  *सत्र के 13वें जूम मीटिंग वेबीनार का हुआ आयोजन विषय था आरटीआई और पुलिस विभाग*


 


 


  दिनांक 20 सितंबर 2020 को सुबह 11:00 बजे से दोपहर 2:00 बजे तक इस सत्र के 13वें जूम मीटिंग वेबीनार का आयोजन किया गया जिसमें कार्यक्रम की अध्यक्षता मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह द्वारा किया गया जबकि विशिष्ट अतिथि के रूप में पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी, पूर्व मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप एवं माहिती अधिकार मंच के संयोजक भास्कर प्रभु सम्मिलित हुए। कार्यक्रम का संयोजन एवं प्रबंधन का कार्य सामाजिक कार्यकर्ता एवं आरटीआई एक्टिविस्ट शिवानंद द्विवेदी एवं अधिवक्ता नित्यानंद मिश्रा के द्वारा किया गया।


 


 


   रविवार 20 सितंबर को आयोजित ज़ूम मीटिंग वेबीनार में कार्यक्रम का विषय पुलिस विभाग में आरटीआई लगाते समय किन किन बातों का ध्यान रखें और कैसे आरटीआई के माध्यम से पुलिस विभाग के क्रियाकलाप में पारदर्शिता लाई जाए विषय रहा जिसमें पूरे देश से विभिन्न राज्यों के लगभग एक सैकड़ा पार्टिसिपेंट्स ने अपनी सहभागिता निभाई जिसमें प्रमुख रुप से मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, झारखंड, उत्तराखंड, नई दिल्ली, राजस्थान, विहार, गुजरात, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र आदि राज्यों से कार्यकर्ताओं ने भाग लिया और अपनी अपनी बातें रखी।


 


 


   *पुलिस यदि एफ आई आर की कॉपी नहीं देती तो वह कर्तव्य की अवहेलना और आरटीआई का उल्लंघन है - सूचना आयुक्त राहुल सिंह*


 


 


    पुलिस विभाग पर आरटीआई के विषय में चर्चा करते हुए मध्य प्रदेश के राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने कहा की अक्सर धारा 8(1)(जे), 8(1)(एच) का हवाला देकर पुलिस विभाग के लोक सूचना अधिकारी जानकारी नहीं देते लेकिन एफ आई आर के संदर्भ में जानकारी दी जानी चाहिए और यदि ऐसा नहीं किया जाता तो यह डेरेलिक्शन आफ ड्यूटी के तहत अर्थात दायित्व के प्रति लापरवाही और अवहेलना में आता है और साथ में सूचना अधिकार कानून का उल्लंघन माना जाता है। यदि कोई जानकारी धारा 8 की उपधाराओं का हवाला देकर रोका जाता है तो पुलिस विभाग को यह बात आयोग के समक्ष स्पष्ट करनी पड़ेगी कि आखिर वह क्या कारण है की जानकारी छुपाई जा रही है और नहीं दी जा रही है।


 


  *भगत सिंह बनाम केंद्रीय सूचना आयोग का निर्णय 2008*


 


 


    चर्चा के दौरान नई दिल्ली हाईकोर्ट में वर्ष 2008 का एक निर्णय भगत सिंह बनाम केंद्रीय सूचना आयोग का आया जिसमें हाईकोर्ट नई दिल्ली द्वारा कहा गया कि कोई भी जानकारी धारा 8 की उपधाराओं का हवाला देकर नहीं रोकी जा सकती और यह उचित नहीं है।


 


 


 *उपस्थित कार्यकर्ताओं ने रखी अपनी अपनी बातें*


 


 


    इस बीच झारखंड से सम्मिलित हुए कपिल ने बताया कि उन्होंने आरटीआई लगाकर कुछ जानकारी पुलिस विभाग से चाही थी लेकिन जानकारी लोक सूचना अधिकारी द्वारा नहीं दी गई तो उसकी प्रथम अपील की गई जिस पर डीजीपी कार्यालय के द्वारा 16-17 अधिकारियों के खिलाफ जांच बैठा कर उनके ऊपर कार्यवाही कर दी गई और 149 लोगों के ऊपर एफ आई आर का मामला सामने आया था। इसी प्रकार विदिशा से अचल दुबे के एक प्रकरण में ईओडब्ल्यू भोपाल द्वारा कार्यवाही नहीं की जा रही थी और जानकारी नहीं दी जा रही थी जिसके विषय में आयोग के निर्देश के बाद कार्यवाही की गई। सुनील खंडेलवाल ने बताया कि उन्होंने आरटीआई का आवेदन दायर कर कुछ अपराधियों के आपराधिक एवं सामाजिक स्तर के बारे में संबंधित थाने से जानकारी चाहिए थी लेकिन वह जानकारी भी धारा 8 की उपधाराओं का हवाला देकर नहीं दी गई थी।


 


  इस पर राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने बताया कि सभी आपराधिक रिकॉर्ड पब्लिक पोर्टल पर दर्ज होने चाहिए जिसे कोई भी व्यक्ति कहीं से कभी भी जानकारी प्राप्त कर लें और इसमें धारा 8 की उपधाराओं के तहत छुपाए जाने का कोई प्रावधान ही नहीं है। इसी बात पर नित्यानंद मिश्रा अधिवक्ता जबलपुर द्वारा बताया गया कि सुप्रीम कोर्ट का निर्देश है जिसमें किसी भी अपराधी की जानकारी नहीं छुपाई जा सकती है और उसे पब्लिक करना पड़ेगा। भोपाल से अनिल सक्सेना ने बताया कि वह भोपाल में रहते हैं लेकिन उत्तर प्रदेश में उनके विरुद्ध एफ आई आर दर्ज की गई जबकि वह मौके पर उपस्थित नहीं थी इस पर आरटीआई लगाकर उनके द्वारा सीडीआर की जानकारी चाही गई लेकिन जानकारी नहीं दी गई।


 


 


   *जानकारी वीभत्स और अनैतिक है तभी रोकी जाएगी अन्यथा जानकारी रोकना गलत - शैलेश गांधी*


 


 


   इस विषय पर अपना विचार व्यक्त करते हुए पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त श्री शैलेश गांधी ने कहा कि अमूमन पुलिस विभाग सिर्फ तीन धाराओं का हवाला देकर ही जानकारी छुपाने का प्रयास करता है बाकी उनके पास कोई अन्य आधार नहीं रहती। आरटीआई की धारा 8(1)(जी), 8(1)(जे) और 8(1)(एच) ऐसी धाराएं हैं जिनका हवाला देकर पुलिस विभाग जानकारी देने से मना करता है। लेकिन गांधी का मानना था कि आरटीआई कानून में सिर्फ वह जानकारी छुपाई जा सकती है जो वीभत्स और अनैतिक हो अर्थात जिस जानकारी में किसी भी व्यक्ति की मोरालिटी और डिसेंसी का मामला हो वही जानकारी छुपाई जा सकती है अन्यथा चाहे वह लोक सूचना अधिकारी हो, प्रथम अपीलीय अधिकारी हो, अथवा सूचना आयोग हो किसी भी प्रकार की कोई जानकारी लोकतंत्र में आरटीआई कानून के तहत छुपाए जाने का कोई प्रावधान नहीं होना चाहिए। शैलेश गांधी ने बताया कि आर राजगोपाल के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय में यह आदेश दिया गया था कि चाहे वह स्टेट इनफॉरमेशन कमिश्नर हो अथवा सेंट्रल इनफॉरमेशन कमिश्नर जानकारी छुपा नहीं सकते।


 


 


  *विकलांग आवेदक ने अपना दुखड़ा रोया और आयोग से मांगी मदद नहीं बनाई जा रही विकलांगता सर्टिफिकेट*


 


 


   रविवार की जूम मीटिंग वेबीनार के दौरान सम्मिलित एक आवेदक ने बताया कि वह पिछले 8 साल से अपनी बीमारी को लेकर विकलांगता प्रमाण पत्र के लिए भटक रहा है लेकिन उसकी विकलांगता प्रमाण पत्र आज तक नहीं बन पाई है। दिव्यांग आवेदक ने बताया कि वह कानून की डिग्री होल्डर है और संजय गांधी मेमोरियल अस्पताल रीवा, रेड क्रॉस सोसाइटी रीवा, और तमाम चक्कर काट चुका है लेकिन कहीं से उसे कोई रिलीफ नहीं मिली है और हर जगह उसे यहां से वहां का रास्ता बता दिया जाता है पर सवाल यह था कि आखिर उसकी बीमारी को लेकर विकलांगता सर्टिफिकेट कहां बनेगी? इस विषय पर उसने उपस्थित एक्सपर्ट से मदद मांगी जिसके बाद वहां पर उपस्थित डॉक्टर धीरेंद्र मिश्रा के द्वारा बताया गया कि वह उनसे संपर्क करें और वह कार्य में मदद करेंगे।


 


 


  *लोकायुक्त से संबंधित सभी आर्डर पब्लिक किए जाएं - भास्कर प्रभु*


 


 


  इस बीच माहिती अधिकार मंच मुंबई के संयोजक भास्कर प्रभु ने मध्य प्रदेश की स्थिति के विषय में चर्चा करते हुए कहा कि चूंकि मध्य प्रदेश में लोकायुक्त से संबंधित काफी प्रकरण सामने आ रहे हैं इसलिए मध्य प्रदेश सूचना आयोग को चाहिए कि वह लोकायुक्त से संबंधित जितने भी आदेश हैं उन्हें पब्लिक पोर्टल पर डाल दें जिससे आम जनता को वह सुलभ उपलब्ध हो पाए।


 


 


   इस बीच सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने बताया कि मध्य प्रदेश के वर्तमान मुख्य सूचना आयुक्त अरविंद शुक्ला के द्वारा लोकायुक्त वाले मामले में काफी महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए हैं जिस पर एक आवेदक ने बताया कि यदि हम आरोपी हैं तो लोकायुक्त हमें अपराधी की तरह देखता है और सूचना के अधिकार का न तो कोई जवाब देता है जिससे हम अपना भी पक्ष रख पाए। इस विषय पर सूचना आयुक्त ने कहा कि लोकतंत्र में हर व्यक्ति को अपना पक्ष रखने का अधिकार है चाहे वह भले ही क्यों न आरोपी हो और सूचना का अधिकार अधिनियम सभी के लिए बराबर है।


 


 


   *भ्रष्टाचार और मानवाधिकार के हनन के संबंध में सूचना देने में कोई छूट नहीं होगी - आत्मदीप*


 


 


   इस बीच पूर्व सूचना आयुक्त आत्मदीप ने बताया कि लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू के मामले काफी महत्वपूर्ण होते हैं और इस विषय में सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा कई अधिसूचनाएं भी जारी की गई है जिसमें बहुत ही कम बिंदुओं पर छूट दी गई है। धारा 24(1) का हवाला देते हुए आत्मदीप ने कहा कि यदि मामला भ्रष्टाचार और मानवाधिकार के उल्लंघन से संबंधित है तो इस विषय में नोटिफिकेशन में भी स्पष्ट लिखा गया है कि लोकायुक्त ईओडब्ल्यू अथवा पुलिस विभाग को कोई छूट नहीं दी जाएगी और जानकारी साझा करनी ही पड़ेगी। आत्मदीप ने पूर्व सूचना आयुक्त पीपी तिवारी के ईओडब्ल्यू और लोकायुक्त से संबंधित आदेश का हवाला देते हुए बताया कि अपने कार्यकाल में पी पी तिवारी ने सरकार द्वारा जानकारी रोके जाने संबंधी अधिसूचना को ही चैलेंज कर दिया था और उसे अवैध करार कर दिया जिस अधिसूचना में जानकारी रोके जाने की बात कही गई थी।


 


 


   *सूचना आयोग के निर्णय पर हाई कोर्ट द्वारा रिट पिटिशन दायर करवाया जाना आरटीआई कानून को कमजोर करना है - शैलेश गांधी*


 


 


   जूम वेबीनार के दौरान पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने बताया कि आरटीआई में अंतिम अपील सूचना आयोग में की जाती है और आयोग का निर्णय अंतिम और बाध्यकारी होता है। आयोग के निर्णय के बाद लोक सूचना अधिकारियों पर जुर्माना लगाए जाने के बाद लोक सूचना अधिकारी उच्च न्यायालय में जाकर आयोग के विरुद्ध रिट पिटिशन दायर कर स्टे ले कर के आ जाते हैं जो उचित नहीं है। शैलेश गांधी ने कहा की रिट पिटिशन और अपील का जूरिडिक्शन क्या है इस बात पर कार्य किया जाना आवश्यक है। सूचना आयोग के निर्णय के विरुद्ध किसी भी पब्लिक अथॉरिटी को रिट पर स्टे कैसे मिल जाता है यह स्वयं ही प्रश्न के दायरे में है और आयोग की शक्तियों को कमजोर करना है।


 


 


  *कार्यक्रम में यह यह कार्यकर्ता रहे उपस्थित*


 


   रविवार 20 सितंबर 2020 को आयोजित 13वें जूम मीटिंग वेबीनार के दौरान देश के दर्जनों राज्यों से लगभग एक सैकड़ा से अधिक आरटीआई कार्यकर्ता अधिवक्ता सामाजिक कार्यकर्ता एवं सिविल राइट्स एक्टिविस्ट उपस्थित हुए और अपनी अपनी बातें रखें और मामले से जुड़े मुद्दों पर चर्चाएं की। कार्यक्रम में मुख्य रूप से अधिवक्ता नित्यानंद मिश्रा एवं शिवेंद्र मिश्रा एक्टिविस्ट शिवानंद द्विवेदी एवं सर्वेश सोनी, पुष्पराज तिवारी, आशीष राय, अंकुर मिश्रा, सुनील खंडेलवाल, राम खिलाड़ी मीणा, सपना मीणा, मदन गोपाल, कपिल, अशोक गोयल, प्रबुद्ध गर्ग, राजीव खरे, मृगेंद्र सिंह, देवेंद्र सिंह आदि सैकड़ों कार्यकर्ता उपस्थित रहे। कार्यक्रम सुबह 11:00 बजे से प्रारंभ होकर दोपहर 2:00 बजे तक चलता रहा। बता दें यह सत्र का 13वें जूम मीटिंग में वेबीनार रहा जो निरंतर एक इतिहास बना रहा है इसमें पूरे देश के विभिन्न राज्यों से कार्यकर्ता सम्मिलित होकर अपनी समस्याओं का समाधान पा रहे हैं।


 


 


 *संलग्न*- कृपया कार्यक्रम की संलंग तस्वीरें देखने का कष्ट करें।


 


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 *शिवानंद द्विवेदी सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता जिला रीवा मध्य प्रदेश मोबाइल नंबर 9589152587*


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