तराई क्षेत्र के लोगो का प्रमुख धर्म स्थली बना "महतिया बाबा आश्रम" -

तराई क्षेत्र के लोगो का प्रमुख धर्म स्थली बना "महतिया बाबा आश्रम"


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हरित प्रवाह समाचार पत्र


  रज्जन तिवारी त्योंथर


                           


चौविस घण्टे सीताराम की धुन में रमे एक ऐसे प्रसिद्ध बाबा है जो सदैव भगवान की तपस्या में लीन रहते हैं मुख से निकलता है तो "सीताराम "अपने आप को एक छोटी सी जगह में सुरक्षित कर जाली और दीवार के घेरे में बिता दिये पचासी वर्ष चाहे वो शरीर को झुलसा देने वाली गर्मी हो या कड़ाके की ठण्ड बाबा की जगह वहीं है ।यहाँ आने जाने वाले भक्त बाबा के दूर से ही दर्शन कर जै सीताराम का अभिवादन करते है ।जी हाँ हम बात कर रहे तराई क्षेत्र की प्रमुख धर्मस्थली महतिया बाबा आश्रम की बहुत कम सौभाग्य साली भक्त हैं जो बाबा के कृपा पात्र हैं जिनसे बाबा उनके स्वास्थ्य से लेकर घर परिवार के बारे में पूछते हैं ।यदि कुछ समस्या भक्तो ने बताई तो बाबा उनको कष्ट निवारण के नाम पर किसी को तुलसीदल,धुयनी का भभूत, कुएँ का जल या जंगल की जड़ीबूटी,देकर ठीक कर देते हैं ।जाने के लिये तो आश्रम में लोगो का तांता लगा रहता है लेकिन दूर से दर्शन कर लोग वापस आ जाते हैं ।बाबा की ऐसी कृपा की आश्रम में स्थित कुएँ में शीतल जल भरा रहता इसी कुएँ के जल को बाबा भक्तो को देते हैं देश विदेश से अपनी दवा कराकर जो स्वास्थ्य नही हुये वो यहाँ आकर ठीक हुए ।देश के कोने कोने में स्थित पवित्र नदियों का जल एवं सगरो जल इसमें समाहित है ।महतिया बाबा के प्रति इस क्षेत्र की लोगो की अपार आस्था है लोग ऐसा मानते हैं कि एक सिद्ध पुरुष ही ऐसे रह सकता हैं अपनी पूरी जिंदगी भगवान की सेवा में समर्पित करने वाले महतिया बाबा किसी से कोई अपेक्षा उम्मीद नही रखी अपने सरल स्वभाव के धनी बाबा के दरवार में सच्चे मन से जो भी पहुँचा है उसकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण हुई है ।बाबा आने वाले समय क्या होने वाला है भक्तो पहले ही आगाह कर देते हैं ।मंगलवार ,शनिवार के दिन दूर दूर से भक्त आश्रम में आते हैं उत्तर प्रदेश एवं मध्यप्रदेश की सीमा में मौजूद इस आश्रम की अपनी अलग ही पहचान है कभी लोग इस जगह में आने से हिचकते थे क्योंकि यहाँ घनघोर दियाबान जंगल था गाँव के लोग यहाँ मुर्दे जलाया करते थे ।किसी ने कल्पना नही की थी एक समय ऐसा भी आएगा जब यहाँ हनुमान जी महाराज की दिव्य प्रतिमा स्थापित होगी ।


 


आश्रम की जमीन में विवाद


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                                महतिया बाबा आश्रम जैसी पवित्र जगह की जमीन को स्थानीय कुछ लोगो द्वारा अतिक्रमण करने का प्रयास किया जा रहा है ।जबकि लोग भूल गये की इस जमीन के संरक्षक स्वयं रीवा कलेक्टर है ।पैतालिस एकड़ नब्बे डिसमिल जमीन आश्रम की है ।इसी जमीन को बिना विवाद के अतिक्रमणकारियों द्वारा विवादित बताकर बाउंड्री निर्माण कार्य मे रोक लगाई जाती है । आश्रम से जुड़े सेवादारों को धमकाया जाता है ।जबकि महतिया बाबा के आदेशानुसार आश्रम की पूरे जमीन में बाउंड्री बननी है ।लेकिन अतिक्रमण कारी आश्रम की बाउंड्री नही बनने दे रहे ।जहाँ जमीन आश्रम की है वहाँ अपनी बताकर रोक लगाई जाती है ।आश्रम की जमीन से लगी गाँव के लोगो की जमीन है 2013 से लगातार अबतक आश्रम के अधिकृत सेवादारों द्वारा प्रशासन से सीमांकन की मांग की जा रही है लेकिन जिला प्रशासन के लिये यहाँ का सीमांकन चुनौती बन गया है ।जबकि 2009 में सीधी विधायक केदार शुक्ला ने यहाँ का मामला मध्यप्रदेश विधानसभा में उठाया था ।लेकिन अब तक आश्रम की जमीन का सीमांकन नही हो पाया ।


 


कौन है महतिया बाबा 


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                             जवा तहसील के चांदी गाँव के एक मांझी परिवार से ताल्लुख रखने वाले महतिया बाबा आज श्री श्री 108 श्री रामदास महराज महतिया बाबा हो गये ।महज पन्द्रह वर्ष की उम्र में अपना घर परिवार माता पिता को छोड़कर साधु सन्तो के सानिध्य में रहकर भगवान की सेवा में लग गये और आज वो बालक सौ वर्ष की उम्र पार कर रहे ।जो इस क्षेत्र के लिये मिशाल बन गये ।महतिया बाबा के गुरु तपस्वी महराज,जिन्हें पुजारी जी महाराज के नाम से सम्बोधित किया जाता था बाबा अपने गुरु के सानिध्य में रहकर घटेहा स्थिति रामजानकी मन्दिर में पूजा पाठ करने लगे ।लेकिन गांव के कुछ लोगो को इनका मन्दिर में रहना ठीक नही लगा आये दिन महतिया बाबा को परेशान करने लगे फिर इन्होंने घटेहा रामजानकी का मन्दिर छोड़कर उत्तरप्रदेश के शंकरगढ़ के पास बहेरा गांव में एक मन्दिर में रहने लगे छ साल तक वंहा रहकर भगवान की सेवा की ।तभी कुछ भक्त वहा पहुचे और महतिया बाबा से आरजू मिन्नत करने लगे कि आप वापस चलिये ।बाबा आने के लिये राजी हुये लेकिन भक्तो से बोले मैं अब गाँव मे नही जाऊंगा अब दूसरी जगह में रहूँगा ।और बाबा वापस आये और जंहा आज आश्रम बना हैं इसी जगह में रहने लगे ।बाबा बताते हैं शुरुआती दिनों में एक घोंपा बनाकर हम रहने लगे यहाँ बहुत जंगल था जंगली जानवर शेर ,चीते जैसे कई जानवर मेरे आसपास पानी पीने आते थे ।बाबा बताते हैं कि हम गाय चराते थे और नमक रोटी बनाकर भगवान को अर्पित कर हम भी पा लेते थे ।समय के साथ महतिया बाबा यँहा हनुमान जी की दिव्य प्रतिमा स्थापित कराए मन्दिर का निर्माण होना शुरू हुआ धीरे धीरे आज एक विशाल आश्रम बन गया ।आये दिन मन्दिर में होते है कीर्तन भजन ।


 


 


 


बिंझन कुँआ का रहस्य


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         महतिया बाबा ने कुछ ऐसे कार्य किये जो लोगो की समझ से परे है ।लोग समझ ही नही पाए कि आखिर ये हो क्या रहा है ।जिसका जीता जागता उदाहरण बिंझन पर्वत पर बना कुँआ है जब महतिया बाबा ने कहा कि पहाड़ में एक कुँआ खोदवाना हैं ।लोग हैरान हो जाते की क्या बोल रहे हैं कभी पहाड़ में पानी निकलेगा ।लेकिन लोगो की हैरानी पर बाबा ने विराम लगा दिया ।एक विशाल पर्वत जो तकरीबन पांच हजार फिट ऊँचाई में है ।वहाँ कुआँ बना और उस कुएँ में हमेशा पानी रहता है जिसको बनाने आठ साल लगे ।लोगो ने माना भक्ति की शक्ति को और पर्वत के ऊपर बहुत ही प्राचीन शिव जी का मंदिर हैं । महतिया बाबा कुछ समय तक बिंझन पर्वत पर रुके थे कुएँ का कार्य चल रहा था ।


 


 


 


 


आश्रम में मौजूद हैं गाय


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                                आश्रम में दो दर्जन से ज्यादा गाय मौजूद हैं जिनकी देखरेख यहाँ लगे सेवादार करते हैं आश्रम की बाउंड्री के बाहर गायों का चरागाह है ।


 


 


चूल्हे में बनता है प्रसाद जो बहुत ही स्वादिष्ट रहता है ।पारंपरिक त्योहारों में यहाँ काफी भीड़ होती है ।चाहे जन्माष्टमी हो दीपावली,हनुमान जयन्ती, दसहरा, होली,जैसे कई त्योहारों पर आयोजन होते हैं ।


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