मनरेगा और मजदूर से संबंधित रखी गई कई समस्याएं*~

*MP//Rewa//Bhopal// आरटीआई और मजदूर विषय पर आयोजित हुआ सत्र का 15 वां ज़ूम वेबीनार, सूचना आयुक्त राहुल सिंह की अध्यक्षता में आयोजित हुआ कार्यक्रम, कार्यक्रम में मजदूरों की समस्या को रखा गया प्राथमिकता के साथ, मनरेगा को लेकर दिए गए कई महत्वपूर्ण सुझाव,मनरेगा और मस्टर रोल में अनियमितता रहा चर्चा का विषय*


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दिनांक 04 अक्टूबर 2020, स्थान - रीवा मप्र।


 


 


     सूचना के अधिकार अधिनियम के विषय में जन जागरण का कारवां बढ़ता जा रहा है। इस कार्य में नित नए लोग जुड़ते जा रहे हैं और यह कारवां नित नए आयाम गढ़ता जा रहा है। ट्विटर पर एक सामान्य सजेशन से प्रारंभ हुआ यह अभियान नित नए रूप ले रहा है जिसमें देश के जाने-माने सूचना के अधिकार क्षेत्र के योद्धा जुड़ रहे हैं और अपना मार्गदर्शन और अनुभव साझा कर रहे हैं। मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह की अध्यक्षता में दिनांक 4 अक्टूबर 2020 को इस सत्र का 15 वां जूम मीटिंग वेबीनार का आयोजन किया गया जिसमें विशिष्ट अतिथि के रूप में पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी, मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप एवं माहिती अधिकार मंच मुंबई के संयोजक भास्कर प्रभु सम्मिलित रहे। कार्यक्रम का संयोजन प्रबंधन एक्टिविस्ट शिवानंद द्विवेदी एवं अधिवक्ता नित्यानंद मिश्रा के द्वारा किया गया। कार्यक्रम के अन्य सहयोगियों में अधिवक्ता शिवेंद्र मिश्रा, एक्टिविस्ट सर्वेश सोनी, पत्रिका समूह से वरिष्ठ पत्रकार मृगेंद्र सिंह, दैनिक जागरण से देवेंद्र सिंह आदि सम्मिलित रहे।


 


   *आरटीआई एवं मजदूर विषय पर आयोजित हुआ वेबीनार*


 


    इस बीच जब पिछले 2 अक्टूबर को गांधी एवं शास्त्री जयंती मनाई गई और पूरे देश में महात्मा गांधी के विचारों को लेकर जद्दोजहद मची हुई है एवं रोजगार गारंटी अधिनियम को महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम नाम से जोड़कर गांव गांव गली गली तक आम नागरिक को उसके अधिकार देने के दावे किए जा रहे हैं ऐसे में यह प्रश्न स्वाभाविक है कि क्या सरकार द्वारा विभिन्न योजनाओं के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में जारी की जाने वाली राशि का सही एवं उचित सदुपयोग हो पा रहा है? इसी अवसर पर 4 अक्टूबर 2020 को सूचना का अधिकार एवं मजदूर विषय पर जूम मीटिंग वेबीनार का आयोजन किया गया।


 


  *लोकपाल मनरेगा पर बहुत ही जल्द मध्यप्रदेश के संदर्भ में होगा ऐतिहासिक निर्णय - सूचना आयुक्त राहुल सिंह*


 


 


  इस बीच कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने बताया कि उनके कार्यकाल में उन्होंने मध्य प्रदेश सूचना आयोग में कुछ अभूतपूर्व निर्णय लिए हैं जिससे सूचना के अधिकार का कानून मजबूत हुआ है। रीवा के एक आवेदक पुष्पराज तिवारी के द्वारा लगाई गई आरटीआई पर अपना मत स्पष्ट करते हुए राहुल सिंह ने बताया की यह आरटीआई आवेदक द्वारा रीवा के लोकपाल मनरेगा कार्यालय में लगाया गया था। जिसके बाद बताया गया कि लोकपाल मनरेगा में सूचना का अधिकार अधिनियम लागू नहीं होता है और कोई लोक सूचना अधिकारी नहीं बैठता है। परंतु सवाल यह है कि बिहार जैसे राज्यों में मनरेगा लोकपाल को काफी सशक्त किया गया है और उनके सभी निर्णय वेब पोर्टल पर साझा किए जाते हैं तो फिर मध्यप्रदेश के परिपेक्ष में ऐसा क्यों नहीं है? इस पर श्री सिंह ने कहा कि बहुत ही जल्द मध्यप्रदेश में एक ऐसी व्यवस्था पर विचार किया जा रहा है जिससे मजदूरों को अपने ग्राम पंचायत से ज्यादा दूरी पर न जाना पड़े और मनरेगा लोकपाल से संबंधित शिकायतों के विषय में शिकायत और आरटीआई सीधे ग्राम पंचायत में ही दाखिल की जा सके इसके लिए सरकार को निर्देशित किया जाएगा कि या तो वह ग्राम पंचायत स्तर पर मनरेगा लोकपाल के लोक सूचना अधिकारी नियुक्त करें अथवा पहले से चल रही व्यवस्था पर ही लोकपाल मनरेगा का भी दायित्व दें।


 


     आयुक्त राहुल सिंह ने बताया कि बहुत ही जल्द इस विषय पर विचार करते हुए एक जनहितैषी निर्णय पारित किया जाएगा जिससे मजदूरों की दशा में काफी सुधार होगा। जिससे मजदूरों को अपने गांव से पलायन नहीं करना पड़ेगा और मनरेगा के कार्यों में काफी हद तक पारदर्शिता आएगी।


 


 


   *केंद्र और राज्य स्तर पर मजदूरों के लिए काफी व्यवस्थाएं पर लाभ नहीं मिल पा रहा - आत्मदीप*


 


 


    मजदूरों की वर्तमान दयनीय स्थिति पर अपना मत प्रकट करते हुए पूर्व सूचना आयुक्त आत्मदीप ने बताया कि मजदूरों के विषय में कई ऐसे विभाग हैं जैसे पंचायत विभाग, श्रम विभाग, सामाजिक न्याय आदि जिनसे मजदूरों के विषय में सूचना का अधिकार आवेदन लगाकर काफी जानकारी प्राप्त की जा सकती है और यह सभी विभाग मजदूरों के लिए जवाबदेह हैं। परंतु इसके बावजूद भी आज मजदूरों की स्थिति दयनीय बनी हुई है इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण यह है कि मजदूर अशिक्षित होते हैं जिससे उनके मालिक उनका काफी फायदा उठा लेते हैं। मनरेगा योजना पर प्रकाश डालते हुए बताया गया कि मजदूरों के लिए कार्यस्थल पर पेयजल की व्यवस्था, बच्चों के खेलने की व्यवस्था, महिलाओं के लिए समुचित व्यवस्था आदि सभी बातें रहती हैं लेकिन वास्तविक धरातल पर यह सब देखने को नहीं मिलता है और यह सब भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है। इसके विषय में समाज के साथ साथ सरकार को भी ध्यान देने की आवश्यकता है। इस के विषय में अपना मत प्रकट करते हुए बताया गया कि आज मजदूरों का कार्य पूरी तरह से ठेका पद्धति पर आधारित हो गया है जिससे लेबरों का काफी हद तक शोषण बढ़ गया है और दबाव के कारण आवाज भी नहीं उठा पाते हैं। सिक्योरिटी गार्ड का उदाहरण देते हुए बताया कि उन्हें लगभग 12 हज़ार रुपये की राशि पेमेंट की जानी चाहिए लेकिन शहरों में 6 या 7 हज़ार रुपये में कार्य करते हैं और अपनी पीड़ा व्यक्त करते हैं।


 


   *दिल्ली के अस्पतालों सहित कई प्रतिष्ठानों में इकोनॉमिकली वीकर सेक्शन के लिए व्यवस्था के दिए थे निर्देश - शैलेश गांधी*


 


 


   जब सवाल मजदूरों का आया तो जूम वेबीनार मीटिंग में मौजूद पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने बताया कि उन्होंने अपने कार्यकाल में दिल्ली के संदर्भ में वहां के अस्पतालों में जो बिस्तर अलाउड रहते हैं उसके विषय में सुनवाई करते हुए जानकारी चाहिए थी कि आखिर इकोनॉमिकली वीकर सेक्शन गरीब दर्जे के लोगों के लिए कितने बिस्तर रिजर्व रहते हैं जिस पर गुमराह करने का प्रयास किया गया था इस पर उन्होंने शख्ती से निर्देश दिया था कि जितने बिस्तर इकोनॉमिकली वीकर सेक्शन के लिए अलॉट रहते हैं उन पर उस सेक्शन के लोगों को स्थान दिया जाए। शैलेश गांधी ने बताया कि यदि कहीं जानकारी छुपाई जाती है और किसी योजना में गड़बड़ी की जाती है तो उसकी शिकायत संबंधित सूचना आयोग में की जानी चाहिए जिसके बाद सूचना आयोग संज्ञान लेते हुए धारा 4 के तहत ऐसी समस्त जानकारी सार्वजनिक करने के निर्देश जारी करेगा।


 


  *राष्ट्रपति को भी सार्वजनिक करनी पड़ी अपनी संपत्ति - शैलेश गांधी*


 


   इस बीच एक मामले का जिक्र करते हुए पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने बताया कि एक बार उनके पास ऐसा मामला आया जिसमें आवेदक ने यह कहा कि उच्च से उच्च पद पर प्रतिष्ठित अधिकारी और व्यक्ति अपने संपत्ति की जानकारी वेब पोर्टल पर साझा करते हैं लेकिन भारत के राष्ट्रपति अपनी संपत्ति की जानकारी साझा नहीं करते। इस पर कार्यवाही की जानी चाहिए। जिसके विषय में शैलेश गांधी ने बताया कि उन्होंने राष्ट्रपति को सीधे आदेश तो नहीं दिया लेकिन सुझाव के तौर पर निर्देश अवश्य जारी किया जिसमें उन्होंने लिखा कि आखिर यदि पूरे भारत में सभी अधिकारी और उच्च पद पर बैठे हुए व्यक्ति अपनी संपत्ति की जानकारी सार्वजनिक करते हैं तो राष्ट्रपति को भी इस विषय में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए और इससे समाज में पारदर्शिता ही आएगी। इसके बाद सुझाव का इतना तगड़ा असर हुआ कि अगले 1 सप्ताह के भीतर ही भारत के राष्ट्रपति द्वारा अपनी संपत्ति वेब पोर्टल पर साझा की गई।


 


   *12 अक्टूबर राष्ट्रीय सूचना का अधिकार दिवस को बनाएं महत्वपूर्ण - आत्मदीप*


 


    सूचना का अधिकार दिवस 12 अक्टूबर के विषय में पूर्व राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने कहा कि सभी अखबारों और मीडिया संस्थानों को सूचना के अधिकार अधिनियम को लेकर एक विशेष जन जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिए जिसके चलते अखबारों में एक पृष्ठ रिजर्व करते हुए उसमें सूचना के अधिकार से जुड़े हुए व्यक्तियों मामलों पर आर्टिकल लिख प्रकाशित किया जाना चाहिए जिससे सूचना के अधिकार के प्रति आम जनता में जन जागरण फैलाया जा सके और इस कानून को और भी सशक्त बनाया जाना चाहिए।


 


   *मजदूर किसान शक्ति संगठन का आरटीआई एक्ट लाने में महत्वपूर्ण योगदान*


 


 


    वेबीनार के दौरान जब चर्चा आरटीआई एक्ट के विषय में हुई और इसके उद्गम की बात आई तो मजदूर किसान शक्ति संगठन की बात भी सामने आई जिसने राजस्थान में आंदोलन कर इस कानून को वास्तविक धरातल पर लाने में काफी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इस विषय में श्रीमती अरुणा राय एवं निखिल डे जैसे कार्यकर्ताओं के भी नाम सामने आए जिन्होंने सूचना के अधिकार अधिनियम को वास्तविक स्वरूप में लाने में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।


 


   *सोशल ऑडिट के पहले कुछ महत्वपूर्ण जानकारी हाथ में होना आवश्यक - भास्कर प्रभु*


 


    वेबीनार के दौरान कुछ प्रश्नकर्ताओं ने अपनी समस्या रखते हुए सोशल ऑडिट और जनसुनवाई के कांसेप्ट को बेहतर समझने के लिए अपने प्रश्न रखें। इस विषय पर जवाब देते हुए माहिती अधिकार मंच मुंबई के संयोजक भास्कर प्रभु ने बताया की कोई भी व्यक्ति सोशल ऑडिट और जनसुनवाई कर सकता है पर इसके पहले कुछ होमवर्क करना आवश्यक होता है। आरटीआई की धारा 2(जे)(1) एवं 2(जे)(3) जिसमें निरीक्षण एवं सैंपल लेने का प्रावधान होता है इसके विषय में चर्चा करते हुए भास्कर प्रभु ने बताया कि सबसे पहले हमें दस्तावेज प्राप्त करने चाहिए जिससे उस कार्य के बारे में जो एस्टीमेट जारी हुए हैं उसकी जानकारी हमें मिल जाए। जब आवश्यक एस्टीमेट और कार्य की जानकारी हमारे हाथ में रहती है उसके उपरांत जब हम सोशल ऑडिट और जनसुनवाई का कार्यक्रम करते हैं तो हमारी बातों को गंभीरता से सुना जाता है और उस पर संबंधित विभाग द्वारा कार्यवाही की जाती है अन्यथा की स्थिति में पर्याप्त दस्तावेज के अभाव में विभाग कार्यवाही करने पर आनाकानी भी कर सकता है।


 


   *~मनरेगा और मजदूर से संबंधित रखी गई कई समस्याएं*~ 


 


   कानपुर उत्तर प्रदेश से मेघराज सिंह ने बताया कि उन्होंने अपने पंचायत में मनरेगा में किए गए कार्य के बारे में जानकारी चाही तो उन्हें जानकारी नहीं दी गई। बाद में उनके द्वारा शिकायत भी की गई जिसमें केंद्रीय स्तर से जांच टीम नियुक्त हुई लेकिन जांच को भी दबा दिया गया। मेघराज ने बताया कि इसी मामले को लेकर उनके ऊपर संबंधित दूसरे पक्ष के द्वारा अटैक भी करवाया गया जिससे उनको काफी नुकसान भी हुआ। उनके द्वारा सूचना का अधिकार आवेदन लगाया गया है तो इसे धारा 6(3) के तहत अंतरित कर दिया गया है और बताया गया है कि जानकारी उनके पास उपलब्ध नहीं है। उपस्थित विशेषज्ञों के द्वारा बताया गया कि आवेदक प्रथम एवं द्वितीय अपील समय सीमा पर करें एवं केंद्रीय सूचना आयोग से कार्यवाही की मांग करें।


 


   *ज़ूम मीटिंग है वेबीनार के दौरान यह यह कार्यकर्ता हुए सम्मिलित*


 


   इस बीच 4 अक्टूबर 2020 दिन रविवार को सुबह 11:00 बजे से लगभग 1:30 तक आयोजित की गई जूम मीटिंग वेबीनार के दौरान पूरे भारतवर्ष के विभिन्न प्रदेशों मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, झारखंड, बिहार, आंध्र प्रदेश, नई दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ आदि दर्जनों राज्यों से लगभग 100 पार्टिसिपेंट्स सम्मिलित हुए और अपनी अपनी समस्याएं रखी।


 


*संलग्न* - कृपया संलग्न फ़ोटो देखने का कष्ट करें।


 


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*शिवानन्द द्विवेदी एक्टिविस्ट, जिला रीवा मध्य प्रदेश मोबाइल नंबर 9589152587*


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