*MP//Rewa//Bhopal// आरटीआई दिवश की पूर्वसंध्या पर आयोजित हुआ सत्र का 16वां राष्ट्रीय वेबीनार, आरटीआई कल और आज विषय पर हुई चर्चा, जजों की नियुक्ति और स्थानांतरण पर पारदर्शिता, गिरीश चंद्र देशपांडे निर्णय से आरटीआई कानून हुआ कमज़ोर, और असेम्बली पार्लियामेंट में दी जाने वाली जानकारी क्यों न पब्लिक को दी जाय आदि विषय रहे चर्चा के बिंदु*
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दिनांक 11 अक्टूबर 2020, स्थान - रीवा मप्र।
आज जब 12 अक्टूबर को राष्ट्रीय सूचना का अधिकार दिवस मनाए जाने की तैयारी चल रही है ऐसे में यह बात स्वाभाविक है कि देश के बुद्धिजीवियों से लेकर हर वर्ग के लोग आज इस बात को अवश्य जानना चाहेंगे कि पिछले 15 वर्ष से अधिक समय व्यतीत हो जाने के बाद और 16 वें वर्ष लगने के साथ सूचना का अधिकार कानून भारत में किस स्तर पर पहुंचा है और जिस मंशा से आरटीआई कानून को एक्टिविस्टों द्वारा मेहनत कर वर्तमान स्वरूप में लाया गया था क्या उसका औचित्य पूरा हो पाया है? और क्या आज सरकारी कामकाज में पारदर्शिता आप आई है? और क्या जनता को आरटीआई कानून का वास्तविक लाभ मिल पाया है? इन सब प्रश्नों के साथ और इनका जवाब ढूंढने के लिए परंपरागत रूप से प्रति रविवार आयोजित होने वाली राष्ट्रीय जूम मीटिंग वेबीनार का कार्यक्रम रखा गया जिसमें 11 अक्टूबर को सुबह 11 बजे से दोपहर 2 बजे तक ज़ूम मीटिंग वेबीनार में आरटीआई कल और आज विषय पर उपस्थित विशेषज्ञों ने अपने अपने विचार प्रकट किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने की जबकि इस कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथियों में पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त श्शैलेश गांधी एवं श्रीधर आचार्युलु, पूर्व मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त श्री आत्मदीप, वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता एवं आरटीआई एक्टिविस्ट मजदूर किसान शक्ति संगठन के कोफाउंडर निखिल डे एवं महिती अधिकार मंच मुंबई के संयोजक भास्कर प्रभु सम्मिलित हुए।
कार्यक्रम का संयोजन एवं प्रबंधन एक्टिविस्ट शिवानंद द्विवेदी के द्वारा किया गया जबकि अन्य सहयोगियों में अधिवक्ता एवं आरटीआई एक्टिविस्ट नित्यानंद मिश्रा, शिवेंद्र मिश्रा, विनोद दास, राजीव खरे, देवेंद्र गोयल, मृगेंद्र सिंह, देवेंद्र सिंह आदि सम्मिलित रहे।
_*आरटीआई कानून अपनी मंशा से अभी बहुत पीछे - सूचना आयुक्त राहुल सिंह*_
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए मध्य प्रदेश सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने उपस्थित सभी विशिष्ट अतिथियों का स्वागत किया एवं साथ में श्रोताओं को भी धन्यवाद दिया। आयुक्त राहुल सिंह ने सूचना के अधिकार कल और आज विषय पर अपने विचार रखते हुए कहा कि सूचना का अधिकार कानून अपनी मंशा के अनुरूप आज 16 साल में भी वास्तविक स्वरूप पर नहीं आ पाया है जिसके पीछे मुख्य कारण जन जागरूकता का अभाव एवं साथ में ब्यूरोक्रेसी एक बड़ी समस्या है। श्री सिंह ने कहा कि पहले प्रारंभ में आरटीआई कानून को लेकर उत्साह था लेकिन जैसे-जैसे समय व्यतीत होता गया सूचना मिलने में देरी और लोक सेवकों द्वारा कानून की अवहेलना के चलते लोगों के उत्साह में गिरावट आ गई है। आरटीआई को धंधा बना लिए लोगों के द्वारा समय के साथ सूचना के अधिकार कानून का दुरुपयोग भी काफी हद तक बढ़ गया है जिसकी वजह से जो वास्तविक जानकारी प्राप्त करने के पात्र लोग हैं उन्हें भी जानकारी नहीं मिल पाती है।
_*सोशल ऑडिट और जनसुनवाई एक बड़ा हथियार - सूचना आयुक्त राहुल सिंह*_
सोशल ऑडिट के विषय में अपनी बात रखते हुए आयुक्त श्री सिंह ने कहा कि मुम्बई से भास्कर प्रभु के माध्यम से सोशल ऑडिट का कांसेप्ट जूम मीटिंग के दौरान प्रकाश में आया जिसको लेकर मप्र से शिवानंद द्विवेदी के द्वारा निरंतर सोशल ऑडिट की जा रही है जो मध्यप्रदेश में पहली मर्तबा ऐसा हुआ है। सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने कहा कि आरटीआई कानून को मजबूत करने के लिए सबको मिलकर काम करने की आवश्यकता है।
_*पेंडेंसी खत्म हो जाए इसके लिए छुट्टी के दिन भी कार्यालय जाकर फाइल निपटारा करता हूं - सूचना आयुक्त राहुल सिंह*_
मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयोग में वर्ष 2015-16 से लेकर अब तक के पेंडिंग पड़े हुए प्रकरणों के विषय में अपनी बात रखते हुए सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने बताया कि उन्होंने वॉलिंटियर्स हायर कर पेंडेंसी खत्म करने का हर भरसक प्रयास किया है जिसके चलते वह छुट्टियों के दिन भी काम करते हैं और वॉलिंटियर्स के साथ में मिलकर फाइलों का निपटारा करते हैं। श्री सिंह ने कहा यदि कोई आवेदक वर्ष 2016 में आरटीआई लगाया है और उसे जानकारी वर्ष 2020 में आयोग के हस्तक्षेप से मिल रही है तो यह काफी चिंता का विषय है और इससे जानकारी लेने के प्रति उत्साह भी पूरी तरह से खत्म हो जाता है जिसके विषय में कार्य करने की आवश्यकता है। श्री सिंह ने कहा कि हमें सकारात्मक विचारधारा रखनी चाहिए और बदलाव आएगा इस सोच के हिसाब से अपना 100 प्रतिशत योगदान देना चाहिए। राहुल सिंह ने बताया कि लोग अपने अधिकार की बात करते हैं लेकिन अधिकारों के साथ समाज के प्रति अपने कर्तव्य के विषय में भी ध्यान देना चाहिए जिससे काफी हद तक सामाजिक समस्याओं का समाधान अपने आप हो जाएगा। सूचना आयुक्त ने कहा कि आयोग लोक सूचना अधिकारी की गलती पर उन्हें जुर्माना लगाता है और कोई लोक सूचना अधिकारी यदि गलती करेंगे तो जुर्माने से नहीं बचेंगे। सूचना आयोग से जुड़े हुए मामलों में भी और साथ में आरटीआई जन जन तक कैसे पहुंचे इसके लिए पब्लिक पार्टिसिपेशन की आवश्यकता है।
_*न्यूनतम मजदूरी की मांग से उठी आरटीआई कानून की मांग - आरटीआई एक्टिविस्ट निखिल डे*_
कार्यक्रम के अगले वक्ता के तौर पर आमंत्रित विशिष्ट अतिथि मजदूर किसान शक्ति संगठन के कन्वीनर निखिल डे ने बताया कि आरटीआई कानून का पूरा ढांचा लाने में काफी लोगों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है जिसमें आत्मदीप, प्रभात जोशी, अजीत भट्टाचार्य, निखिल चक्रवर्ती, अरुणा राय आदि सम्मिलित रहे हैं। निखिल डे ने बताया की प्रभात जोशी हिंदी पत्रकारिता के भीष्म पितामह माने जाते थे और उन्होंने पारदर्शिता को लेकर पत्रकारिता के माध्यम से भी काफी प्रयास किए। निखिल डे ने कहा कि प्रभात जोशी, अजीत भट्टाचार्य, निखिल चक्रवर्ती, जैसे महत्वपूर्ण व्यक्ति आज हमारे बीच में नहीं रहे लेकिन आरटीआई कानून और ग्रासरूट की आवाज उठाने के लिए इन सब महानुभावों का अद्वितीय अभूतपूर्व योगदान रहा है। श्री डे ने कहा कि 1996 में उन्होंने अपनी पूरी टीम के साथ 40 दिन का धरना दिया था जिसके बाद मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी को लेकर और अन्य पारदर्शिता से जुड़े हुए मामलों को लेकर काफी क्रांति आई। निखिल डे ने बताया कि यदि आरटीआई कानून की बात की जाए तो इसके जो वास्तविक हीरो हैं वह मजदूर और गाँव के लोग ही हैं जिन्होंने अपनी न्यूनतम मजदूरी को लेकर निरंतर मांगे उठाई हैं जिसके सामने सरकार को भी झुकना पड़ा। निखिल डे ने बताया कि जहां मजदूर कार्य कर रहे थे उन्हें वर्षों से मजदूरी नहीं मिल रही थी और जहां थोक में फर्जी मस्टररोल जारी कर काम होना बताया जा रहा था और मजदूरों का नामोनिशान नहीं था वहां पर भारी मात्रा में पैसे की निकासी हो रही थी। इस प्रकार मजदूरों के द्वारा यह नारा दिया गया कि हमारा पैसा हमारा हिसाब और प्रत्येक ग्रामीण व्यक्ति अपने गांव में स्कूल, हॉस्पिटल, पंचायती कार्य, खाद्यान्न, राशन की दुकान, सड़क निर्माण, बिजली, पानी आदि की जानकारी मांगने लगा।
_*प्रभात जोशी ने कहा था मैं उस जनता को नमन करता हूं जिन्होंने पारदर्शिता का मुद्दा उठाया - एक्टिविस्ट निखिल डे*_
निखिल चक्रवर्ती एवं प्रभात जोशी को याद करते हुए मजदूर किसान शक्ति संगठन के संयोजक एवं वरिष्ठ समाजसेवी निखिल डे ने बताया कि निखिल चक्रवर्ती का कहना था कि वह गांधी जी के आंदोलन के साथ जुड़े हुए थे और उस समय वह पत्रकारिता किया करते थे तब उन्होंने देखा था कि गांधी जी किस प्रकार 200 से 300 के बीच के लोगों को संबोधित करते थे और अंग्रेजो के द्वारा एवं नौकरशाहों के द्वारा किए जा रहे शोषण की बातें आम जनता को बताया करते थे। प्रभात जोशी के विषय में चर्चा करते हुए श्री डे ने कहा कि वह जनसत्ता अखबार के संपादक थे और जब भी कभी जनता के बीच में जाते वह बस एक ही बात करते कि मैं उस जनता को नमन करता हूं जिसने पारदर्शिता और अपने अधिकार की बात उठाई है।
_*चौथी पास सुशीला नामक घाघरा पहने महिला ने पत्रकारों सहित सरकार की खोली आंख - निखिल डे*_
मजदूर किसान शक्ति संगठन एवं नेशनल कैंपेन फॉर पीपल राइट टू इनफार्मेशन के कार्यों को याद करते हुए निखिल डे ने बताया कि जब वह 40 दिन के धरने पर बैठे थे और मीडिया वाले आकर एक चौथी पास सुशीला नामक घाघरा पहने हुए राजस्थानी महिला से जानना चाहा कि आप धरने पर किस बात के लिए बैठी है तो जो जवाब उस महिला ने दिया इसके बाद सबकी आंखें खोल दी। निखिल डे ने बताया केई उस महिला ने कहा जब हम 10 रुपये अपने बच्चों को देते हैं और कहते हैं कि बाजार से सामान लाओ इसके बाद बच्चे से हम पूछना चाहते हैं कि उस 10 रु को किस प्रकार खर्च किया और उसका हिसाब दो तो क्या फिर हम अरबों खरबों की संपत्ति सरकार द्वारा जनता के लिए दी जाती है उसकी जानकारी सरकार से नहीं पूछ सकते कि वह उसका हमें हिसाब दे?
_*प्रभात जोशी ने नया नारा दिया हम जानेंगे हम जिएंगे - निखिल डे*_
निखिल डे ने कहा कि आंदोलन के दौरान प्रभात जोशी द्वारा एक नया नारा दिया गया हम जानेंगे हम जिएंगे जो वास्तविक धरातल पर काफी महत्वपूर्ण माना गया था। क्योंकि हर व्यक्ति को जानने का अधिकार है अतः हमें सूचना का अधिकार चाहिए है। निखिल डे ने बताया कि ज्यादातर जानकारी सूचना के अधिकार के माध्यम से वेब पोर्टल में पब्लिक तौर पर साझा की जानी चाहिए जो की धारा 4 का मुख्य मंशा है। यदि धारा 4 के तहत ज्यादा से ज्यादा जानकारी पब्लिक डोमेन पर आएगी तो आम जनता, गरीब मजदूर किसान को सूचना का अधिकार आवेदन लगाए जाने की कोई जरूरत नहीं पड़ेगी। जीवन जीने के अधिकार राइट टू लाइफ और समानता के अधिकार राइट इक्वलिटी के विषय में चर्चा करते हुए निखिल डे ने बताया कि संविधान के अनुच्छेद 21 और 14 में इसका स्पष्ट उल्लेख है लेकिन इसके बावजूद भी लोक सूचना अधिकारियों द्वारा सूचना के अधिकार अधिनियम का मखौल बनाया जाता है। निखिल डे ने कहा की सूचना के अधिकार के तहत ज्यादा से ज्यादा जानकारी साझा की जानी चाहिए, सभी जानकारी ऑनलाइन होनी चाहिए, और ऐसे में आरटीआई का दुरुपयोग अपने आप बंद हो जाएगा।
_*अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एवं सूचना का अधिकार दोनों मजबूत होना चाहिए - निखिल डे*_
अभी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के किसी न्यायाधीश के द्वारा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अपना मत रखते हुए यह कहा गया था कि फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन के नाम पर सबसे अधिक दुरुपयोग किया जा रहा है जिसके विषय में उपस्थित सभी विशेषज्ञों के द्वारा यह कहा गया कि फ्रीडम आफ एक्सप्रेशन का दुरुपयोग संभव है लेकिन फ्रीडम आफ एक्सप्रेशन के दुरुपयोग को लेकर सोशल एक्टिविस्ट और वरिष्ठ नागरिकों को टारगेट किया जा रहा है। अतः सुप्रीम कोर्ट के जजों के द्वारा इस प्रकार से बात कहना फ्रीडम आफ एक्सप्रेशन को कुचलने जैसा है।
_*हमारा पैसा हमारा हिसाब से ही सोशल ऑडिट की उत्पत्ति हुई - निखिल डे*_
सोशल ऑडिट और जनसुनवाई के विषय में अपना मत प्रकट करते हुए मजदूर किसान शक्ति संगठन के संयोजक निखिल डे ने बताया कि मजदूरों द्वारा न्यूनतम मजदूरी को लेकर हमारा पैसा हमारा हिसाब की मांग की गई। उस समय आरटीआई कानून अस्तित्व में नहीं था और जानकारी प्राप्त करने में काफी मशक्कत करनी पड़ती थी फिर भी सोशल ऑडिट और जनसुनवाई का कार्यक्रम किया जाता था। लेकिन आरटीआई कानून आने के बाद जानकारी पब्लिक डोमेन में साझा होने और सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त होने के बाद सोशल ऑडिट और जनसुनवाई को मजबूती मिली है। आज सभी विभागों की सोशल ऑडिट और जन सुनवाई की जा सकती है और प्राप्त जानकारी को जनता के समक्ष रखकर पारदर्शिता लाने में काफी मदद मिली है इससे सामाजिक जवाबदेही बढ़ी है।
_*विभागों को एडमिन लॉगइन हटाना चाहिए जिससे सिस्टम पारदर्शी बने- निखिल डे*_
सरकारी विभागों में पारदर्शिता की बात करते हुए मजदूर किसान शक्ति संगठन के निखिल डे ने बताया कि किसी भी विभाग के वेब पोर्टल में जाने पर सभी जानकारी उपलब्ध नहीं हो पाती है उसका कारण एडमिन लॉगिन और पासवर्ड होता है। इस विषय में निखिल डे ने कहा कि जो जानकारी एडमिन के पास है वह जानकारी आम जनता के पास भी होनी चाहिए इसलिए एडमिन लॉगइन की व्यवस्था को हटाया जाना चाहिए और सभी जानकारी ऑनलाइन होनी चाहिए और वेब पोर्टल सभी के लिए खुला हो। इस विषय पर राजस्थान सरकार का उदाहरण देते हुए जन सूचना पोर्टल की बात का हवाला दिया गया और स्क्रीन शेयरिंग के माध्यम से जन सूचना पोर्टल की कुछ विशेषताओं को निखिल डे के द्वारा साझा किया गया जिसमें ज्यादातर पब्लिक इंर्पोटेंस की जानकारी वेब पोर्टल पर उपलब्ध रहती है।
_*जो जानकारी लेजिसलेटिव असेंबली और पार्लियामेंट को दी जाती है वह जानकारी आम जनता को भी सुलह हो - शैलेश गांधी*_
पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने अपनी बात रखते हुए कहा कि गिरीश चंद्र देशपांडे का प्रकरण जब सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा तो उसको लेकर सुप्रीम कोर्ट में सरकारी वकील के द्वारा सही तर्क नहीं दिए जाने के चलते इस पर जो निर्णय हुआ उसने सूचना के अधिकार कानून को पूरे भारत में कमजोर किया है। श्री गांधी ने बताया कि 8(1)(एच) और 8(1)(जे) के प्रावधान के तहत निर्णय देते हुए उच्चतम न्यायालय यह बात भूल गया कि जब आरटीआई कानून में यह बात स्पष्ट तौर पर लिखी है कि जो जानकारी लेजिसलेटिव असेंबली और पार्लियामेंट में दी जाएगी वह जानकारी आम जनता को भी उपलब्ध होनी चाहिए तो फिर ऐसा निर्णय क्यों लिया गया जिस को आधार बनाकर डीओपीटी ने सर्कुलर जारी किया जिससे 8(1)(एच) और 8(1)(जे) का हवाला देकर लोक सूचना अधिकारी आवेदक को चाही गई जानकारी उपलब्ध नहीं करवाते हैं जिसकी वजह से आमजन को परेशान होना पड़ता है और सूचना आयोग में अपील करनी पड़ती है।
_*राजस्थान की तर्ज पर हर राज्य में बने जन सूचना पोर्टल - शैलेश गांधी*_
अपना सुझाव देते हुए पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने बताया कि राजस्थान की तर्ज पर हर राज्य में जन सूचना पोर्टल होना चाहिए जिसमें सभी जानकारी आम जनता को बिना किसी समस्या के सहज ही उपलब्ध हो जाए। सूचना आयुक्त की नियुक्ति में पारदर्शिता होनी चाहिए और साथ में टाइम बाउंड जस्टिस डिलीवरी सिस्टम होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट एवं अन्य हाई कोर्ट के द्वारा सूचना आयुक्तों के निर्णय पर अड़ंगा लगाने और आयोग के विरुद्ध निर्णय दिए जाने के चलते शैलेश गांधी ने कहा कि कोर्ट को संविधान द्वारा प्रदत्त आरटीआई कानून के साथ छेड़खानी नहीं करनी चाहिए जिससे सूचना का अधिकार कानून कमजोर हो।
श्रीधर आचार्युलु के द्वारा सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट को आड़े हाथों लिया गया जिसमें उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति के संदर्भ में प्रश्न खड़ा किए जिसका समर्थन करते हुए पूर्व सीआईसी शैलेष गांधी ने कहा कि जिस प्रकार सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति में पारदर्शिता नहीं है उसी प्रकार लोकपाल आंदोलन आने के बाद लोकपाल क्या कर रहा है लोकपाल का क्या हुआ यह भी आम जनता को पता नहीं है और ठीक वैसे ही सूचना आयोग, महिला आयोग, मानवाधिकार आयोग, एससी एसटी आयोग आदि आयोगों में आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर काफी बातें छुपाई जाती है और पारदर्शिता का अभाव होता है जिसे सुधार किया जाना आवश्यक है।
_*गिरीश चंद्र देशपांडे प्रकरण आरटीआई कानून को कमजोर करने वाला मामला - श्रीधर आचार्यलू*_
इस रविवार 11 अक्टूबर को ज़ूम मीटिंग वेबीनार के दौरान विशिष्ट अतिथियों में सम्मिलित पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्युलु ने कहा कि सरकार पूरा सिस्टम इस प्रकार बना रही है जिसमें पारदर्शिता का अभाव रहे, भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिले और जानकारी बाहर न निकले। यह सिस्टम की गलती है और सरकार नहीं चाहती कि पारदर्शिता आए। निखिल डे के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के विषय में अभी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के एक जज के द्वारा अपना कमेंट दिए जाने जिसमें जज के द्वारा यह कहा गया की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग हो रहा है इस पर अपना मत रखते हुए श्रीधर आचार्युलु ने कहा की यह संविधान के अनुच्छेद का उल्लंघन है और सुप्रीम कोर्ट जैसी संस्था पर बैठे जज को ऐसे स्टेटमेंट नहीं देना चाहिए। राइट टू प्राइवेसी के उल्लंघन के विषय में तो श्रीधर अचार्युलू ने बताया कि यदि हर गली मोहल्ले में सीसीटीवी कैमरा लगा दिया गया है तो क्या यह आम व्यक्ति के प्राइवेसी का उल्लंघन नहीं है? तो फिर 8(1)(जे) का हवाला देकर गिरीश चंद्र देशपांडे प्रकरणों का हवाला देकर सरकार द्वारा आम जनता के उपयोग की जानकारी क्यों छुपाई जा रही है। श्रीधर आचार्युलु ने कहा की यदि डिग्री और सर्टिफिकेट व्यक्तिगत जानकारी है तो फिर किसी क्रिमिनल केस से संबंधित जानकारी भी तो व्यक्तिगत हो सकती है फिर उसे क्यों साझा किया जाता है?
_*गिरीश चंद्र देशपांडे प्रकरण को लेकर डीओपीटी की एडवाइजरी आरटीआई के लिए सबसे बुरा दिन - श्रीधर आचार्युलु*_
सुप्रीम कोर्ट के द्वारा गिरीश चंद्र देशपांडे मामले को लेकर दिए गए निर्णय के आधार पर डीओपीटी विभाग द्वारा हजारों विभागों को जो एडवाइजरी जारी की गई और कहा गया कि डिसीप्लिनरी एक्शन और पब्लिक सर्वेंट कि यह जानकारी न दी जाए इस एडवाइजरी ने सूचना के अधिकार कानून की रीढ़ तोड़ के रख दी है। श्रीधर आचार्युलु ने कहा की यदि किसी लोक सेवक की जानकारी साझा करना प्राइवेट मानी जाएगी तो इस स्थिति में फिर लोक सेवकों के द्वारा किया जाने वाला भ्रष्टाचार कैसे उजागर हो पाएगा?
_*जजों की नियुक्ति और स्थानांतरण पब्लिक होना चाहिए - श्रीधर आचार्युलू*_
सुप्रीम कोर्ट में जग रहे एसपी गुप्ता के निर्णय की प्रशंसा करते हुए पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्यलु ने बताया कि श्री एसपी गुप्ता ने लैंडमार्क निर्णय दिए हैं जिसमें उन्होंने बहुत पहले यह बात कही है कि सभी जजों की नियुक्ति के संदर्भ में जानकारी पब्लिक डोमेन में रखी जानी चाहिए। जज धनंजय चंद्रचूड़ के निर्णय का हवाला देते हुए पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्यलू ने बताया कि जज चंद्रचूड़ ने स्पष्ट रूप से आदेश दिया कि जजों के अपॉइंटमेंट में पारदर्शिता आनी चाहिए और कौन से जज का ट्रांसफर कहां किया जा रहा है यह भी जानकारी पब्लिक डोमेन में साझा होनी चाहिए।
_*पारदर्शिता और लोकतंत्र के लिए अंधकारमय समय - श्रीधर आचार्युलु*_
हाथरस की घटना का जिक्र करते हुए श्रीधर आचार्युलु ने कहा कि प्रशासन शासन के द्वारा मीडिया और आम जनता को उस क्षेत्र में जाने से रोक दिया गया है और पुलिस मन मुताबिक रिपोर्ट दे रही है। यह सब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, प्रेस की स्वतंत्रता और साथ में लोकतंत्र के लिए अच्छी बात नहीं है। पब्लिक रिप्रेजेंटेटिव के गंभीर आपराधिक प्रकरण हो जैसे - रेप, मर्डर आदि के विषय में स्पीडी ट्रायल की चर्चा करते हुए श्रीधर आचार्यलु ने बताया कि यही व्यवस्था सबके लिए होनी चाहिए क्योंकि एक आम आदमी जो आरोपी है उसको भी स्पीडी ट्रायल के तहत ही केस पर कार्यवाही की जानी चाहिए। एक तरफ तो हम संविधान के अनुच्छेद 14 राइट टू इक्वलिटी की बात करते हैं और दूसरी तरफ नेताओं और आम नागरिक के लिए इतना अधिक भेदभाव है जो कि बिल्कुल अनुचित है।
_*आरटीआई पहला कानून जो जनभागीदारी से बना - आत्मदीप*_
जूम वेबीनार के दौरान अपना मत रखते हुए मध्य प्रदेश पूर्व सूचना आयुक्त आत्मदीप ने कहा कि वह पत्रकारिता से जुड़े हुए थे और जनसत्ता अखबार के लिए काम करते थे उसी समय आरटीआई कानून अस्तित्व में आया। उन्होंने निखिल डे, अरुणा राय आदि के साथ कार्य किया। निखिल डे के विषय में अपनी बात रखते हुए आत्मदीप ने बताया कि वह 1983 में यूएसए में पढ़ाई कर रहे थे तब प्रेरणा बस अपने देश वापस आए और सबसे पहले मध्यप्रदेश के झाबुआ में काम करना शुरू किया। जिस प्रकार से देश को आजादी एक लंबे अरसे के बाद मिली है वैसे ही निखिल डे, अरुणा राय, निखिल भट्टाचार्य, प्रभात जोशी, शैलेश गांधी आदि एक्टिविस्टों के द्वारा निरंतर आंदोलन और कार्य किए जाने के चलते आरटीआई कानून अस्तित्व में आया है जिसमें काफी लोगों की मेहनत सम्मिलित है।
_*लोकपाल आंदोलन दिल्ली से प्रारंभ हुआ और देश में आया जबकि आरटीआई आंदोलन जनभागीदारी से प्रारंभ हुआ और देश में आया - आत्मदीप*_
आरटीआई आंदोलन के विषय में अपनी बात रखते हुए पूर्व मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने कहा कि लोकपाल आंदोलन दिल्ली से प्रारंभ हुआ और देश में आया जबकि आरटीआई आंदोलन गांव और मजदूरों से प्रारंभ हुआ और अपनी न्यूनतम मजदूरी की मांग के चलते यह अस्तित्व में आया जिसके पीछे काफी लोगों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। आरटीआई कानून जनभागीदारी से अस्तित्व में आया जहां उस समय ग्रामीण क्षेत्रों में रसूखदार और बाहुबलियों के बीच में निखिल डे, अरुणा राय आदि लोगों ने किस प्रकार से खतरा उठा कर काम किया और तब जाकर आज आरटीआई कानून बना।
_*जनभागीदारी से अस्तित्व में आए आरटीआई कानून को सरकारें खत्म करना चाह रही है - आत्मदीप*_
आरटीआई कानून की वर्तमान दशा को लेकर अपना मत रखते हुए आत्मदीप ने कहा कि जनभागीदारी से आया आरटीआई कानून आज संकट में है जिसको सरकारें खत्म करना चाह रही है लेकिन इसके लिए जन भागीदारी ही समाधान है और जनता को मिलकर इस कानून को मजबूत बनाने में योगदान देना होगा।
_*आरटीआई मीडिया का बड़ा हथियार, पत्रकारों को ट्रेनिंग देकर जागरूक किया जाना आवश्यक - आत्मदीप*_
आरटीआई कानून के सही उपयोग के विषय में अपना मत प्रकट करते हुए आत्मदीप ने कहा कि यह कानून मीडिया का बहुत बड़ा हथियार है लेकिन आज मीडिया आरटीआई के विषय में कम फोकस कर रही है जो समस्या का विषय है। पत्रकारों को आरटीआई लगाकर ज्यादा से ज्यादा ऑथेंटिक जानकारी प्राप्त करना चाहिए और सरकारों को और सरकारी विभागों के भ्रष्टाचार को बेनकाब करना चाहिए। इसके लिए पत्रकारों को भी और मीडिया से जुड़े हुए लोगों को आरटीआई कानून के विषय में जागरूक किया जाना आवश्यक है। सरकार के कामकाज को लेकर आत्मदीप ने कहा कि धारा 4 के तहत जो अनिवार्य प्रावधान होते हैं सरकारें उसे भी सही तरीके से लागू नहीं करवा पा रही हैं इससे सरकार की कानून के प्रति नकारात्मक मंशा प्रकट होती है।
_*अपीलीय प्रकरणों में आवेदक की पेशी का कोई नियम नहीं, आयोग बने अपीलार्थी का पक्षकार*_
अपीलीय प्रकरण में आवेदक की उपस्थिति को लेकर आत्मदीप ने बताया कि न तो प्रथम अपील और न ही द्वितीय अपील में आवेदक की उपस्थिति अनिवार्य है इसलिए प्रथम अपीलीय अधिकारी और आयोग को आवेदक पर दबाव नहीं बनाना चाहिए और कोई भी अपील आवेदक की अनुपस्थिति के कारण खारिज नहीं किया जाना चाहिए। जब आवेदक उपस्थित नहीं रहता है उसी स्थिति में आयोग ही आवेदक का पक्ष होना चाहिए।
आरटीआई कानून के विषय में लोक सूचना अधिकारी और प्रथम अपीलीय अधिकारियों को आरटीआइ कानून की अनभिज्ञता पर रहती है ऐसे मामले प्रकाश में आए हैं इसको लेकर आत्मदीप ने बताया कि इसके लिए सरकार को विशेष प्रावधान लाकर लोक सूचना अधिकारियों एवं प्रथम अपीलीय अधिकारियों को क्रैश कोर्स और रिफ्रेशर कोर्स के द्वारा जानकारी उपलब्ध करवाई जानी चाहिए और ट्रेनिंग देना चाहिए।
_*आयोग अपने निर्णयों की समीक्षा करें - आत्मदीप*_
कई बार ऐसे भी मामले आते हैं जिसमें आवेदक द्वारा कहा जाता है कि आयोग ने गलत फैसला दिया है। इस स्थिति में गरीब आवेदक उस फैसले के विरुद्ध हाई कोर्ट में चैलेंज नहीं कर सकता इसलिए आयोग को चाहिए कि अपने निर्णयों की समीक्षा करने की व्यवस्था करें जिससे बिना हाईकोर्ट में जाए ही कई मामलों का पुनरीक्षण किया जा सके।
_*सूचना आयुक्त ब्यूरोक्रेटिक पृष्ठभूमि के ना बने - आत्मदीप*_
आरटीआई कानून की मंशा पर अपनी बात रखते हुए मध्य प्रदेश के पूर्व सूचना आयुक्त आत्मदीप ने कहा कि ब्यूरोक्रेटिक पृष्ठभूमि के सूचना आयुक्त जनता के पक्ष में सही निर्णय नहीं देते और अपीलीय प्रकरणों का सही तरीके से निपटारा नहीं करते एवं विभागों का पक्ष लेते हैं जिसकी वजह से आम जनता को काफी परेशानी होती है। जबकि आरटीआई कानून की मंशा के अनुरूप सूचना आयुक्त की नियुक्ति पारदर्शी होनी चाहिए और ज्यादा से ज्यादा सूचना आयुक्त सिविल सोसाइटी से आने चाहिए जैसे कि पत्रकार,समाजसेवी, आरटीआई एक्टिविस्ट आदि। इस विषय पर आत्मदीप ने कहा कि जब तक सूचना आयुक्त की नियुक्ति गैर ब्यूरोक्रेटिक पृष्ठभूमि से नहीं होगी तब तक इसमें ज्यादा सुधार की गुंजाइश नहीं रहेगी।
_*सूचना आयोग जनता से रूबरू होने के अपनाए आधुनिक तरीके मीटिंग हॉल में हो सुनवाई - निखिल डे*_
कार्यक्रम के अंत में अपना सुझाव रखते हुए मजदूर किसान शक्ति संगठन के संयोजक निखिल डे ने बताया कि वह मेक्सिको के विषय में अपना अनुभव रखते हैं और उन्होंने पाया कि आरटीआई पर वहां का सूचना आयोग जनता से बैठकर संवाद करता है। उन्होंने कहा कि हमने भारत के संदर्भ में भी प्रयास किया कि एक आरटीआई काउंसिल बने जिसमें सिविल सोसायटी के लोगों को रखा जाए जिससे जनता और आयोग के बीच में सीधा संवाद हो लेकिन वह अभी तक सफल नहीं हो पाया है और सरकारों की मंशा इसके अनुरूप नहीं है। इसलिए उन्होंने आयोग से मांग की कि सभी सूचना आयोग जनता से संवाद स्थापित करने के लिए मीटिंग हाल में सीधे जनता से रूबरू हों। और कम से कम ऐसी व्यवस्था महीने में एक बार अवश्य की जाए। इस विषय में मध्यप्रदेश के संदर्भ में बताया गया कि राहुल सिंह द्वारा पहले ही फेसबुक लाइव आदि के माध्यम से अपनी सभी सुनवाई या पब्लिक डोमेन पर रखी गई हैं और जनता के कमैंट्स आते रहते हैं जिस के अनुरूप आयोग कार्यवाही भी करता है।
*संलग्न* - कृपया संलग्न जूम मीटिंग वेबीनार के दौरान कार्यक्रम की तस्वीर देखआयने का कष्ट करें।
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*शिवानंद द्विवेदी, सामाजिक कार्यकर्ता,ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट, जिला रीवा मध्य प्रदेश मोबाइल नंबर 9589152587*