फॉरेंसिक विज्ञान के छात्रों को नौकरी ना मिलने से देश को नुकसान -

हिंदुस्तान में आख़िर क्यों न्याय पाना इतना मुश्किल है ?


 


 


हिंदुस्तान में हर रोज बेलगाम बढ़ रहे अपराधों की वजह से, हर इंसान के मन मे ये सवाल जरूर आता है, कि आखिर क्यों अपराध इतने बेहिसाब तरीके से बढ़ रहे है और न्याय मिलने की रफ्तार दिन प्रतिदिन धीमी क्यों हो रही ?


एन-जे-डी-जी (नेशनल ज्यूडिशल डाटा ग्रिड) की माने तो हमारे देश की कोर्टों में 4 करोड़ से अधिक केस लंबित है।


भारत में 2019 के अंत तक हर एक लाख भारतीयों पर 241.2 अपराध दर्ज किए गए हैं तो अगर पूरे देश का अपराध रेट निकाला जाए, तो पूरे साल में भारत में 3253700 अपराध दर्ज किए जाते हैं ,जो कि एक चिंता का विषय है।


पर ये बातें सिर्फ बातों में रह जाती है क्योंकि जो असल वजह है ,उस पर कोई बात नही करता । 


और वजह है अपराधों की जांच में सही तरीको का इस्तेमाल न करना और इसी वजह से जांच सालो साल चलती रहती है और अपराधी के इरादों को मजबूती मिलती रहती है । 


कई बार अपराध करने पर भी अपराधी आसानी से आजाद हो जाता है क्योंकि सही समय पर सही सबूत नहीं मिल पाता ।


 


                        • भारतीय न्यायिक प्रणाली की दक्षता पर लोगों की प्रतिक्रिया -


 


ग्लोबल साइंटिफिक जर्नल के द्वारा किए गए सर्वे से यह पता चला की मात्र 18% लोग ही यह मानते हैं कि भारतीय न्याय व्यवस्था से न्याय प्राप्त होता है और सिर्फ 17% लोग यह मानते हैं कि भारतीय न्याय व्यवस्था सही समय पर न्याय प्रदान करती है ।


 


                                                     आखिर कहां है कमी ? -


 


ये सब इसीलिए हो रहा कि हम सबसे महत्वपूर्ण तरीके को लगातार नज़रअंदाज़ कर रहे , और वो है " फॉरेंसिक साइंस " ..


एक ऐसा तरीका जिससे हम सटीक और एक सही तरीके से किसी भी अपराध की जांच कर सकते है और इससे अपराधी को पकड़ने और दंड देने के प्रतिशत में बहुत इजाफा होता है ।


फॉरेंसिक साइंस की मदद से बहुत रहस्यमयी और जघन्य अपराधों को सुलझाने में मदद मिल चुकी है।


 


"फॉरेंसिक साइंस " बाल से खाल निकालने " की कहावत को सार्थक करता है । "


 


 


• उदाहरण के तौर पर , निम्नलिखित केस फॉरेंसिक जांच के द्वारा ही सुलझाए गए है –


 


शीना बोरा मडर केस                                         


सुनंदा पुष्कर मर्डर केस


प्रमोद महाजन मर्डर केस (2006)                         


प्रद्युमन ठाकुर मर्डर केस


जेसिका लाल मर्डर केस (1999)


 नीरज ग्रोवर मर्डर केस


 


अगर फॉरेंसिक साइंस का इस्तेमाल सही दिशा में किया जाए तो न्यायिक प्रक्रिया और अपराधियों को पकड़ने और अपराधों की गति पर रोकथाम करने में एक अभूतपर्व बदलाव आ सकता है ।


 


" भारत में सिर्फ वेब सीरीज, टीवी सीरियल्स में ही होता है फॉरेंसिक साइंस का प्रयोग.. "


 


कागजों पर दिखाने के लिए फॉरेंसिक लैब्स जरूर है हिंदुस्तान में, लेकिन उसका रूप एक खंडहर से कम नहीं है । नौकरी की प्रक्रिया से लेकर कामकाज के ढांचे तक, हर जगह कमी दिखाई देती है । हिंदुस्तान में फॉरेंसिक साइंस का प्रयोग बहुत सीमित है, जबकि इसका प्रयोग असीमित होना चाहिए। जरूरी है, की एक फॉरेंसिक टीम हर पुलिस थाने में होनी चाहिए जो हर मौके-ए-वारदात पर जाके महत्वपूर्ण सबूतों को इकट्ठा कर सके ।


 


हमारे देश में करीब 9925 फॉरेंसिक के विद्यार्थी पढ़ते हैं हर साल 5000 से 6000 विद्यार्थी फॉरेंसिक साइंस की डिग्री प्राप्त करते हैं, परंतु इन विद्यार्थियों को देश की फॉरेंसिक साइंस लैबोरेट्री में भी नियुक्त नहीं किया जाता या बहुत ही कम विद्यार्थियों को नियुक्त किया जाता है।


हमारे देश में 15,000 से ज्यादा पुलिस स्टेशन और 85 से ज्यादा फॉरेंसिक साइंस लैबोरेट्रीज है, परंतु फॉरेंसिक साइंस के विद्यार्थियों को ना पुलिस स्टेशन में फॉरेंसिक यूनिट के तहत नियुक्त किया जाता है, और ना ही फॉरेंसिक लैबोरेट्री में।


 


 


                                 फॉरेंसिक विज्ञान के छात्रों को नौकरी ना मिलने से देश को नुकसान -


 


फॉरेंसिक विद्यार्थियों को फॉरेंसिक लैब या पुलिस स्टेशन में नियुक्त ना किए जाने की वजह से घटनास्थल पर साइंटिफिक जांच नहीं हो पाती है, अंततः जिसका परिणाम यह होता है कि सबूतों की पूर्ण रूप से जांच नहीं हो पाती या फिर जरूरी सबूत कोर्ट तक नहीं पहुंच पाते। जिसकी वजह से भारतीय न्यायालयों में केस लंबे समय तक चलते रहते हैं।


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